संत श्री हरि प्रेमानंद जी महाराज: एक दिव्य संत की जीवन यात्रा

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संत श्री हरि प्रेमानंद जी महाराज: एक दिव्य संत की जीवन यात्रा

Book: "SPIRITUAL AWAKENING VOL 1" by Shri Hit Premanand Govind Sharan Ji Maharaj (Author)

परिचय

प्रेमानंद गोविंद शरण जी जिन्हें उनके अनुयायी श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज या प्रेमानंद जी महाराज के नाम से जानते हैं। उनका आश्रम वृन्दावन में श्री हित राधा केली कुंज है।

संत श्री हरि प्रेमानंद महाराज एक अत्यंत पवित्र और सहज स्वभाव के संत हैं, जो अपने निर्विकार व्यक्तित्व से सभी को आकर्षित करते हैं। वे वृंदावन के पवित्र धाम में निवास करते हैं और उनके भजन तथा सत्संग का रसास्वादन करने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। संत समाज में उनका स्थान अत्यंत प्रतिष्ठित है, और उनके भक्तों में समाज के प्रतिष्ठित व्यक्तियों से लेकर सामान्य जन भी सम्मिलित हैं। उनकी दिव्य आभा और सहज प्रेम के कारण भक्त उनके प्रति अत्यंत आकर्षित होते हैं। आइए, उनके जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं पर एक दृष्टि डालते हैं।

परिवार और प्रारंभिक जीवन

संत प्रेमानंद जी महाराज का जन्म 1972 में उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के सरसौल क्षेत्र के अखरी गांव में हुआ था। बचपन में उन्हें अनिरुद्ध कुमार पांडे के नाम से जाना जाता था। उनके पिता का नाम श्री शंभू पांडे और माता का नाम श्रीमती रामा देवी था। महाराज जी का परिवार धार्मिक और साधन-संपन्न था, और उनके दादाजी भी एक प्रतिष्ठित संन्यासी थे। उनका बचपन धार्मिक वातावरण में व्यतीत हुआ और इसी का प्रभाव उनके जीवन पर पड़ा।

दीक्षा और संन्यासी जीवन की शुरुआत

मात्र 13 वर्ष की आयु में, प्रेमानंद जी ने संन्यास जीवन को अपना लिया था। उन्होंने दीक्षा ग्रहण कर अपने गुरु संत श्रीहित गौरांगी शरण महाराज से मार्गदर्शन प्राप्त किया। उनके दीक्षा नाम आर्यन ब्रह्मचारी रखा गया। यह संन्यास जीवन उनके लिए प्रारंभिक रूप से अत्यंत कठिन था। उन्होंने वाराणसी में गंगा के तट पर तपस्या की, और अपने प्रारंभिक जीवन में कई दिन बिना भोजन के बिताए। अपने संन्यासी जीवन के आरंभिक दिनों में, वे प्रतिदिन गंगा में तीन बार स्नान करते और तुलसी घाट पर पूजा करते थे। यह साधना उनके संकल्प और धैर्य को मजबूत बनाती रही।

श्री राधावल्लभी संप्रदाय में दीक्षा

प्रेमानंद जी महाराज ने श्री राधावल्लभी संप्रदाय में दीक्षा लेकर भक्ति मार्ग को अपनाया। प्रारंभ में वे ज्ञानमार्गी संन्यासी थे, परंतु श्रीकृष्ण लीला के प्रभाव ने उनके हृदय में भक्ति का बीज बो दिया। वृंदावन में स्थित श्री राधा केली कुंज आश्रम उनका निवास स्थल है। उन्होंने यहाँ रहकर अपना संपूर्ण जीवन श्री राधा रानी की भक्ति और सेवा को समर्पित कर दिया है। उनके गुरु संत गौरांगी शरण महाराज ने उन्हें भक्ति के गहन मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी, और इसके पश्चात उनका जीवन पूरी तरह से बदल गया।

भक्तों की श्रद्धा और सम्मान

प्रेमानंद जी महाराज के भक्तों में समाज के कई प्रतिष्ठित व्यक्ति शामिल हैं। विराट कोहली और अनुष्का शर्मा जैसे नामचीन व्यक्तित्व भी उनके भक्त हैं। इसके अलावा, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत सहित अनेक धर्मों के संत और गुरु भी उनके दर्शन के लिए वृंदावन आते हैं। उनकी ख्याति न केवल भारत में बल्कि विदेशों तक फैली हुई है, और विश्वभर से लोग उनके सत्संग का लाभ उठाने के लिए आते हैं। उनके जीवन का सबसे बड़ा आकर्षण उनका सहज और प्रेममयी व्यक्तित्व है, जो सभी को आकर्षित करता है।

संन्यासी जीवन की कठिनाइयाँ

प्रेमानंद जी महाराज का संन्यासी जीवन कठिनाइयों से भरा रहा है। वे अपनी साधना में इतने लीन थे कि कई बार उन्होंने भोजन नहीं किया। वाराणसी में साधना के दौरान, वे गंगा में स्नान कर केवल गंगाजल पीकर रहते थे। उनके त्याग और समर्पण का यह उदाहरण उनके अनुयायियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। संत जीवन की कठोरता और अनुशासन ने उनके व्यक्तित्व को और भी दिव्य और महान बना दिया।

वृंदावन में आश्रम जीवन

वृंदावन स्थित श्रीहित राधा केली कुंज आश्रम में प्रेमानंद जी महाराज निवास करते हैं। यहाँ पर वे भक्ति मार्ग का प्रचार-प्रसार करते हैं और प्रतिदिन प्रवचन देते हैं। आश्रम का वातावरण अत्यंत शांत और भक्तिमय होता है, और यहाँ आने वाले सभी भक्त प्रेमानंद जी महाराज के प्रवचन से आत्मिक शांति और संतोष प्राप्त करते हैं। महाराज जी का जीवन पूर्णतः श्री राधा रानी की भक्ति और सेवा में समर्पित है।

स्वास्थ्य समस्याएँ और संघर्ष

हालांकि प्रेमानंद जी महाराज का स्वास्थ्य पिछले कुछ वर्षों से खराब चल रहा है, वे अपनी किडनी की बीमारी के बावजूद अपने भक्तों के बीच सक्रिय हैं। उनकी दोनों किडनी कई वर्षों से काम नहीं कर रही हैं, और वे नियमित रूप से डायलिसिस पर हैं। इसके बावजूद, वे प्रतिदिन अपने प्रवचन और साधना को जारी रखते हैं। उनकी भक्ति और आत्मसमर्पण का स्तर ऐसा है कि उन्होंने अपनी किडनियों का नाम राधा और कृष्ण रखा है, जो उनकी अद्वितीय भक्ति को प्रदर्शित करता है।

भक्ति और जप का महत्त्व

प्रेमानंद जी महाराज का दृढ़ विश्वास है कि कलियुग में केवल श्रीहरि की भक्ति ही मनुष्य को समस्त संकटों से मुक्त कर सकती है। वे अपने अनुयायियों को हमेशा जप और ध्यान करने की प्रेरणा देते हैं। उनका मानना है कि यदि प्रतिदिन श्रीहरि का जप किया जाए, तो सभी बाधाएँ और संकट स्वतः ही समाप्त हो जाते हैं। यह भक्ति मार्ग उनके जीवन का मुख्य स्तंभ है, और वे अपने भक्तों को भी इसी मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं।

समर्पण और साधना

प्रेमानंद जी महाराज का जीवन समर्पण, भक्ति और सेवा का एक अनूठा उदाहरण है। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि कठिनाइयों और संघर्षों के बावजूद, यदि भक्ति और श्रद्धा में अडिग रहो, तो सफलता निश्चित होती है। वे अपने जीवन से यह संदेश देते हैं कि सच्चा संत वही है जो अपने जीवन को ईश्वर की सेवा और भक्तों की भलाई के लिए समर्पित कर दे।

निष्कर्ष

संत श्री हरि प्रेमानंद महाराज का जीवन हम सभी के लिए प्रेरणादायक है। उनके प्रवचन और भक्ति मार्ग पर चलने का संदेश आज के समाज के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। उनके जीवन का प्रत्येक पहलू हमें भक्ति, त्याग, और समर्पण का मूल्य सिखाता है। वे अपने सरल और सहज स्वभाव से हमें यह बताते हैं कि ईश्वर की प्राप्ति केवल भक्ति और प्रेम के मार्ग से संभव है।

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